मंत्र परिचय

मंत्र न दिखाई देने वाली एक ऐसी अलौकिक शक्ति है , जिसके द्वारा बहुत कुछ कर दिखाना संभव है |
यद्यपि प्राचीन वेड आदजी ग्रन्थ मन्त्रो से भरे पड़े है , किन्तु फिर भी आज का आधुनिक विज्ञान मन्त्रो की सत्यता को मानने से इंकार करता है | जिस प्रकार एक लेखक की कल्पना-शक्ति मिथ सकती है , उसके वर्णन की शैली पुरानी पद सकती है , किन्तु उसने पुस्तक में जो लिखा है , उस विषय का आधार झुटा नहीं हो सकता | समय का प्रभाव उसके विषय को उपेक्षा योग्य कर सकता है , लेकिन असत्य या मृत बही कर सकता | वैसे ही जैसे गणित में एक और एक दो होते है और यह कालजयी सत्य है, यह न बुरा होगा और न मृत | भले ही कोई इसका व्यवहार करे या न करे | इसी प्रकार मन्त्र शास्वत सत्य है | मंत्र एक सुक्ष्म विज्ञान है , सचेतन शास्त्र है तथा अंतर्मुखी सिद्धि | इसके सत्य की किसी की स्वकृति की आवश्यकता नही |

मंत्र एक ऐसा सुक्ष्म विज्ञान है , जो अत्यंत महत्वपूर्ण है और जिसके द्वारा स्थूल पर नियंत्रण किया जा सकता है | मन्त्र  विराट  को  स्फूर्तिमान रखने  का अनूठा साधन  है | पिंड में  ब्रह्मांड  को  देखने  को  दृष्टि तथा  प्रकृति  को वश  में करने की  अपूर्व  शक्ति  मन्त्रो में ही निहित  है | संत शिरोमणि तुलसीदास  ने रामचरित मानस  में मन्त्र  की महिमा बतलाते हुए कहा है  की मन्त्र  वर्णों की दृष्ठि से बहुत छोटा होता है , किन्तु उससे ब्रह्मा, विष्णु,महेश आदि सब देवता वश में हो जाते है  ; जैसे महामत्त गजराज को एक छोटा - सा अंकुश वश में कर लेता है | अतः स्पष्ट है की मन्त्र अंकुश के सामान  परम  शक्ति से युक्त  होता है | मनन करने से यह प्राण - रक्षा करता है |


मन्त्रो में ऐसी अलौकिक  चमत्कारी शक्तियां  निहित है जिनसे बिगरे हुए कार्य संपन्न हो जाते है , इच्छाओं की पूर्ति होती है तथा जिननके उच्चारण से सुख - समृद्धि के द्वार खुल जाते है | हमारे ऋषि - मुनियों ने अपनी अन्तः प्रज्ञा से जिन मन्त्रो की राचना की है वे आधुनिक  विज्ञान की कसौठी पर पुर्णतः सही सिद्ध होते है | शास्त्रकारो ने 'शब्द' या 'नाद' या 'ब्रह्म' माना है | उन्के अनुसार इस सम्पूर्ण चराचर सृष्ठी  की उत्पत्ति 'शब्द-ब्रह्म' या 'नाद-ब्रह्म' से हुए है  |


"शिवसूत्र-विमर्शनी" के अनुसार मन्त्राः वर्नात्मका सर्वे ,सर्वे वर्ना: शिवात्मका: अर्थात सभी मन्त्र वर्णात्मक है और सभी वर्ण शिवात्मक है | इसका तात्पर्य यह है की वर्ण या शब्द "वाचक" है और मंत्र देवता  "वाच्य" है | वाचक यानि पद या संज्ञा और वाच्य यानी अर्थ या संज्ञा के मध्य जो संबध होता है, उसे "न्याय दर्शन" खा गया है |


वर्ण या शब्द के उच्चारण में जब भाव सम्मिलित होता है , तब वह शक्तिशाली होकर "मन्त्र" या "नाद" बन जाता है | नाद  और बिंदु अर्थात ध्वनी और आकार परस्पर सम्मिलित होते है | यहाँ यह कहा जा सकता है की विभिन्न ध्वनियाँ हमारे मुह से निकलते है , उस ध्वनिसमुह के उच्चारण को मन्त्र की क संज्ञा दी जाती है |

ऐसे ही कुछ विशिष्ट वर्णों को,जो एक  क्रम से  संग्रहण होते है , उच्चारण करना  "मन्त्र" कहलाता है|
मन्त्र का जप मुखतः शक्ति अर्जित करने के लिए किया जाता है| विधि विधान के साथ मन्त्र जप करने से प्राप्त शक्ति के द्वारा अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है| मन्त्र एक ऐसा साधन है , जिसके द्वारा व्यक्ति में अलौकिक शक्ति का संचार हो जाता है और वह संभावना - विरुद्ध परिस्थितियो (आपदाओ) को शं करने में समर्थ रहता है|
"मन्त्र " शब्द बहुयामी है | इसकी व्याख्या अनेक प्रकार से की गयी है | पर सबका सार यही है की संसार में व्याप्त अदृश्य शक्ति उस अपने को स्फुरति करके उसे अपने अनुकूल बनाने वाली विद्या को मन्त्र कहते है | ऋग्वेद विश्व - वाड्मय का सबसे प्राचीन ग्रन्थ माना जाता है | उसमे मन्त्रो का बाहुमुली देखकर मानना पड़ता है की मन्त्रो की रचना वेदों से भी पहले हो चुकी थी | वेड तो अनेक संकलन मात्र है| वेदों के समय तक मन्त्रो का पर्याप्त विकास हो चुका था और वे संस्कृति जीवन के अंग बन गए थे|आध्यात्मिक साधना के रूप में उनका दैनिक प्रयोग होता था| वेदों के बाद संहिता , ब्राह्मण , आराधना और उपनिषद्  ग्रंथो में भी मन्त्रो में अनेक प्रकार की शक्तियां निहित होती है, इसलिए उनका प्रयोग बहुप्रचलित था | ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग तो उनकी सिद्धि अवश्य ही प्राप्त करता था | आज का भौतिक विज्ञान यांत्रिक माध्यम से भी जो कुछ नहीं कर पाता,वह सब मन्त्र शक्ति-दवारा सरलता से हो जाता था| आज के ऊपग्रह और चन्द्र ,मानल विजयी राकेट भले ही विज्ञान की जय -जयकार कर  रहे हो, अनुबम की भयाह्ता अपनी संहारक शक्ति का उद्द्घोश कर रही हो,पर मन्त्र - शक्ति की उपलब्धियों के सम्मुख सब नितांत तुच्छ प्रतीत होते है , नगण्य लगते है| वस्तुतः पौराणिक काल की समाप्ति द्वापर युग के साथ ही मानी जाती है| द्वापर के बाद कलयुग आया और कलयुग के आरम्भिक वर्षो में भी मन्त्र विद्या का पर्याप्त प्रचालन रहा | ऐसा माना जाता है की मुहम्मद गोर के आक्रमण तक भारतवर्ष में मंत्रग्य सुलभ थे| बाद में यवन शासन की स्थापना के साथ-साथ उनकी संख्या घटने लगी और वे सार्वजनिक जीवन से तठस्थ होकर एकांतवासी बन्नते गए | भौतिकता की वृद्धि और उसके प्रभाव में निरंतर बढ़ रही अनास्था , स्वार्थजन्य कुत्सा और अनैतिकता के सन्दर्भ से सुरक्षित रखने के लिए मंत्रग्यो ने इस विद्या को गोप्य बना दिया| वैसे भी सुरक्षा के लिए मन्त्र विद्या पर गोपनीयता का आवरण डाले रखना व्यावहारिक माना गया | 
मन्त्र-शक्ति से मनुष्य का अन्तः करण शतिर और सबल हो जाता है | स्थिरता की मनोदशा में व्यक्ति की कार्यशक्ति भी बड़ जाती है | ऐसा व्यक्ति जातील और असंभव प्रतीत होने वाले कार्य भी मन्त्रो के द्वाता संपादित करने में सक्षम होता है | धन,आरोग्य,ज्ञान,भौतिक -समृद्धि की प्राप्ति और आपदा निवारण के लिए मन्त्रो का प्रयोग किये जाने बात केवल भारतवर्ष में ही नहीं,विदेशी धर्मग्रंथो में भी पाई जाती है| विभिन्न नामो से यह ब्रह्मविद्या किसी न किसी रूप में आज भी अल्भाग सभी देशो में विद्यमान है| 
आसाम,बर्मा,थाईलेंड  और चीन जैसे देशो में आज भी ऐसे मान्त्रिक है , जो अकल्पित घटनाओं को प्रत्यक्ष कर दिखाते है | अब तो अमेरिका,जर्मनी , फ्रांस और इंग्लैण्ड में भी इसके प्रति अभिरुचि जाग्रत हुई है और पिचली दो शताब्दी से वहा के क्किताने ही विद्वान् भारत में आकर इस विद्या का अध्ययन करने लगे है| विख्यात विधेशी पर्यथक  पाल बेधन ने अपनी पुस्तक " सर्च" आफ सीक्रेट इंडिया" में ऐसी कितने ही घटनाओं का उल्लेख किया है , जिनका वह प्रत्यक्षदर्शी था और जिनके द्वारा भारतीय तन्त्र-मन्त्रो, साधू - तपस्वियों की अलौकिक क्षमता का पता लगता है| एलिस एलिजाबेथ नामक व्यक्ति को भी कुछ ऐसी चमत्कारी अनुभूतियाँ हुई थी ,जब  वह भारत और तिब्बत की यात्रा पर आया हुआ था | महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के यात्रा - विवरण में भी तिब्बत के मांत्रिको और उनकी क्षमता का उल्लेख है | सारांश यह है की पूर्व वैदिक काल में उद्भूत हुए मन्त्र -विद्या अपने उद्भव और चरम विकास के बाद ह्रासशील हो जाने पर भी सर्वथा निष्प्राण नहीं हुई | उसका अस्तित्व आज भी है | वह उतनी ही जीवंत और सशक्त है | वस्तुतः यह सत्य है की आज वह सर्वव्यापी न होकर मात्र गिने-चुने मर्मज्ञों के मस्तिष्क में जा छिपी है जो उसकी रक्षा के लिए भौतिकता के कोलाहल से यथासंभव दूर एकांतवास क्र रहे है |

भारतीय आध्यात्मिक उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कितने ही विदेशी पर्यथक प्राचीनकाल से इस ऐतिहासिक सत्य की पुष्ठी करते आ रहे है की योग साधना ,तपस्या ,प्राणायाम और तंत्र -मन्त्र आदि के द्वारा यहाँ के मनीषी असंभव को भी संभव कर दिखाते थे | मेगस्तीज , फाहियान ,ह्वानसांग , इब्नबुतता , वास्कोडिगामा , थामस मुनरो ,पाल ब्रेथम और कीरो आदि ने यहाँ की आध्यात्मिक उपलाभ्दियो से चमत्कृत होकर अपने यात्रा वृतान्तानो में भारतीय धर्म - दर्शन ,योग - साधना और तन्त्र -मन्त्र की भूरी-भूरी प्रशंसा ही है | मन्त्र - शक्ति के प्रभाव और उसकी उपयोगिता को स्वीकारते हुए उन्हूने इस के पुनरप्रचार हेतु तात्कालीन  
शासको से संस्तुति भी की थी |

आज के विकासित ध्वनि - विज्ञान ने भी स्वीकार किया है की ध्वनि क्षमता अद्भुत है | इसके नियमित प्रयोग से वह सब कुछ अरलता से किया जा सकता है , जो वैज्ञानिक उपकरणों और अन्य किसी भौतिक माध्यम से संभव नहीं है | ध्वनि प्रभाव सर्वाधिक स्पष्ट रूप में हमें संगीत में दिएख पड़ता है | संगीत के मेघ - मल्हार और दीपक राग का प्रभावोल्लेख अनेक ग्रंथो में प्राप्त होता है | आज बी संगीत के माधाम से अनेक क्षेत्रो में चमत्कारी कार्य किये जा रहे है | सम्राट विक्रमादित्य और उदयन का वीणा आज के संगीतज्ञो का आराध्य है | बाबा हरिदास, बैजू बावरा भी अपनी संगीत - कला के लिए प्रसिद्ध रहे | मृग का वाणी - प्रेम तो जगत प्रसिद्ध है | 

पशु मनोविज्ञान के मर्मज्ञों आज फेरविंसन का कथन है की पियानो की ध्वनि से मुग्ध होकर चूहे दिन में भी निर्भय होकर पास आ जाते है | मधुमखिया भी ध्वनि का आनन्द लेती है | जर्मनी के एक ध्वनि-विज्ञानी ने अपने अनुभवों का सारांश लिखते हुए बताया की ओंकार के उच्चारण में इतनी क्षमता है की विधिपूर्वक "ॐ " की ध्वनि उत्पन्न की जाय तो उस्समे इतनी शक्ति निहित होगी की उससे ठकराकर आसपास की दीवारे फट जायेंगी |

मन्त्र का प्रभावी होना , उसकी सफलता उसके शुद्ध उच्चारण पर ही निर्भर होता है | अशुद्ध उच्चारण से ध्वनि व्यतिक्रम उत्पन्न होता है जो मन्त्र के उपदेशी के पूर्ति में बाधक हो जाता है | इसलिए मन्त्र-साधना के पूर्व उसके नियमो को समझ लेना अत्यंत आवश्यक है | कोई भी कार्य हो , उसके लिए एक विधि - विधान आवश्यक निर्धारित रहता है | यह अनुकूल क्रिया-कलाप ही उसके सफल बनाता है |
मन्त्रसिद्धि के लिए तो यह प्रतिबद्धता और भी अनिवार्य है | किस उपदेश्यपूर्ति के लिए कौन-सा मन्त्र उपयुक्त होगा | उसका जप-विधान क्या है? उसके लिए आवश्यक सामग्री ,स्थान,जपसंख्या तथा साधक का रहन-सहन क्या और कैसा होना चाहिए? 
इन सब बातो की विधिवत जानकारी प्राप्त करके किसी योग्य गुरु के निर्देशन में मन्त्र साधना आरम्भ की जाए, तभी सिद्धि प्राप्त होती है अन्यथा गुरुहीन साधक उलझनों में रहता है| गुरु से मन्त्र लेने का एक और भी विशेषता है की यदि कोई गुरु जो बहुत ही उच्च कोटि क गुरु है और जिसने अपने जीवन को तपस्या में समर्पित की है और स्वयं मन्त्र को सिद्ध किये हुए बैठे है यदि ऐसा गुरु मिल जाय तोह जीवन धन्य हो जाता है आयर जब कोई व्यक्ति ऐसी गुरु की शरण में जाकर मन्त्र लेता है तोह उस गुरु की सिद्ध वाणी से नकले हुवे ध्वनि स्वयं में पूर्ण होता है और ऐसा साधक जब उस गुरु की दिए हुवे मन्त्र से अपना साधन क्रिया शुरू करता है तोह उसके उपदेश्य का पूर्ति अवश्य होता है इसमें कोई संदेह नहीं और ऐसा साधक कभी भी अपने जीवन में नहीं भतकता क्युकी उसके पास ऐसा गुरु होता है जो उसको हमेशा मार्ग दिखता है और जब साधक की साधना में कोई बाधा आने लगता है तोह गुरु का अध्यात्म तेज उसके पास अपने आप पहुच कर उसके मार्ग में सारे बाधाओं का प्रशमनं करता है | कई साधक ऐसे भी हुए है जो साधना करते करते पागल हो जाता है क्युकी उसके पास कोई ऐसा गुरु ही नहीं है जो उसको बचा सके और उसको मार्ग दिखा सके| ऐसे साधक अहंकार में मन्त्र साधना या योग साधना का अभ्यास शुरू कर देते है और अंत में दुःख और पश्चाताप की सिवा और कुछ नहीं मिलता | में आप सभ लोग से यही प्राथना करूंगा की कोई भी साधना बिना गुरु की बिना कभी भी शुरुवात न करे | हा कई ऐसे साधन भी है जिसके लिए कोई गुरु आवश्यकता नहीं है लेकिन फिर भी अच्छा यही होगा की कोई गुरु हो जीवन में हो जो आपके जीवन में सही मार्ग दर्शन कर सके |

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