कामाख्या तंत्र से एक छोटी सी परिचय


आजकल भारत के बहुत से नगरो में और विदेशो में भी तंत्र शास्त्र के प्रति लोगो की रूचि है जिसके कारण बहुतरे चतुर व्यक्तियों ने अपने आपको तांत्रिक घोषित करके अपनी तंत्र की दुकाने खोल ली है और वास्तविकता तो यह है की धर्म से अनभिज्ञ एवं धर्मभीरु जनता ऐसे तांत्रिकों के चंगुल में सरलता से फँस जाती है | 
यदि इन किसी भी तंत्र के व्यवासायिलो से कोई पूछे की भारत में तांत्रिक सिद्ध पीठ कहा - कहा है ? उन पीठो में कौन - कौन सिद्ध तांत्रिक है ? जिन्हें दीक्षा देने का अधिकार है और तांत्रिक सामर्थ क्या होती है, वह सीधी क्यों प्राप्त की जाती है या किस तंत्र पद्धति से किस महाविद्या अथवा शक्ति के सीधी के लिए कितने दिनों तक साधना करके कौन सी सीधी प्राप्त होती है ? तो वह तथाकथित ढोंगी तांत्रिक कुछ भी उत्तर नहीं दे सकेंगे |
  
वस्तुतः तंत्र शास्त्र में अनेको  शक्तियों की उपासना और साधना का रहस्य बतलाया गया है | यह शक्ति पूजा कब से चली इसका कोई विशेष विवरण तो नहीं मिलता परन्तु ऋग्वेद से लेकर उपनिषद, देवी भागवत पुराण, कालिका पुराण, स्कन्द पुराण और लिंग पुराण आदि में शक्ति का माहात्म्य प्रचुर रूप से मिलता है | इन सब प्राचिएँ ग्रंथो व पुरानो का अवलोकन करने से प्रतीत होता है की शक्ति रूप की उपासना वैदिक काल से चली आती है इस्से यह भी स्पष्ठ हटा है की शैव और शाक्त मत साथ-साथ प्रचलित थे ; कुछ लोग दक्शिनाचारी शाक्त मत को दक्षिण मार्ग या वैदिक शाक्त मत भी पुकारने लगे |

एक समय सारे एशिया में महायान मत फैला था जिसके द्वारा भी सभी देशों में शक्ति पूजा का प्रचार हुआ |

प्राराम्भा में शाक्त, शैव, गाणपत्य, वैष्णव और बौध आदि सम्प्रदायों के साथ-साथ वैदिक शाक्त सम्प्रदाय भी चलता रहा जिसमे बाद में तांत्रिक शाक्त धर्म की विधिया और शाखाय भी जुड़ती गई | तत्पश्चात शाक्त धर्म में वामाचार भी आकर जुड़ गया | दक्षिण और वाम दोनों मार्गो वाले दश महाविद्या की उपासना करते है इन दशो महाविद्याओ के नाम और उनके पति इस प्रकार है ---

 महाविद्या के नाम 


१.   महाकाली                 महाकाल 

२.   उग्रतारा                   अक्षोभ्य 
३.   षोडशी                     पंचवक्त्र  रूद्र 
४.   भुवनेश्वरी               त्रयम्बकं
५.   चिन्मस्तिका           दक्षिणा मूर्ति 
६.   भैरवी                      एकवक्त्र  रूद्र 
७.   धूमावती                  विधवा 
८.   बगलामुखी              सदाशिव
९.   मातंगी                    मतंग
१०. कमला                    विष्णु 


इसमें धूमावती विधवा कहलाती है और षोडशी के अन्य नाम  त्रिपुरसुन्दरी, ललिताम्बिका, श्रीदेवी इत्यादि भी प्रचलित है |

अनंत और अव्यक्त आद्याशाक्ति ही साड़ी सृष्ठी उत्पन्न करती है | उस अज्ञेय और अव्यक्त के विकास में एक ही परम्तत्व का आगम  होता है इसलिय इसे 'आगम' कहते है | उस परमतत्व का ही नाम इश्वर या शिव है | 
जब अपने तपोबल से ब्रह्मा सृष्ठी तो करते जाते थे परन्तु उसमे वृद्धि नहीं हो पा रही थी तो उनकी प्राथना पर शक्ति ने विमर्श  (स्फूर्ति + ओज ) का रूप धारण करके उसमे प्रवेश किया जिसमे तैजस रूप में शिव भी प्रविष्ट हुए | जब शिव में शक्ति ने प्रवेश किया तब बिंदु का विस्तार हुआ इस संयोग से नाद्रूपी स्त्री तत्व की उत्पति हुई |यह बिंदु और नाद दोनों मिलकर ऐसे एक रूप हुए की उनका नाम भी अर्धनारेश्वर पड़ गया इसीको तंत्र की भाषा में संयुक्त बिंदु भी कहते है | बिंदु दो है --- श्वेत तो पुन्सक है और रक्त स्त्रीतत्व है |
दोनों के मेल से कला उत्पन्न होती है | किसी-किसी आगम तंत्र ग्रन्थ में जहा देवी-- कामकला के स्वरुप का वर्णन है वहा संयुक्त बिंदु सूर्य को उनका मुख कहा गया है | अग्नि लाल और उनकी अर्ध्कला को उनकी जननेन्द्रियो बताया गया है | इसी सृष्टि करने वाली देवी को पूरा, ललिता, भथ्थारिका , त्रिपुरसुन्दरी और षोडशी भी कहते है | सब वस्तुओ और शब्दों की उत्पत्ति त्रिपुरसुन्दरी के द्वारा होती है , इसकिये इस देवी का नाम 'परा' है | 
चारो प्रकार की वाणी (परा, पश्यन्ति , मध्यमा और वैखरी) में इसी परा को प्रथम बताया गया है |

कामरूप कामख्या में जो देवी का सिद्ध पीठ है वह इसी सृष्ठीकर्त्री त्रिपुरसुन्दरी (दशमहाविद्याओ में प्रमुख मानी गई है) का है | कामाख्या में जो आजकल प्रसिद्ध तांत्रिक विराजमान है उनका कथन है की पिचले साथ वर्षो में एक भी व्यक्ति तंत्र साधना के निमित नहीं आया है | कुछ ऐसे ही अनुभव दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सह्याद्री पीठ के प्रमुख पुजारी जी का भी है | फिर भी न जाने बड़े-बड़े नगरो में बड़े-बड़े नामपठठ लगाकर अपने आपको तांत्रिक गोषित करने वाले ये लोग कहा से आ गए | तंत्र शास्त्रानुसार तो दश्महाविद्याओ से जो एक सीधी में सिद्ध हो जाता है | आठो सिद्धिया उसके चरणों में लोथ्ती है और उसे किसी बात की कमी नहीं रह जाती |

ऐसा सिद्ध तांत्रिक न तो किसी से कुछ लेता है , और न माँगता है, न संग्रह करता है , न मठ बनाता है और न जनसंकुल स्थान में रहता है |

 दृशा स्पर्शेन फुत्कारै: पांगआगुष्ठेन बोधितै: |

उदकेनाभिमन्त्रोनालुब्धश्च तनुते श्रियम      ||

अर्थात जो व्यक्ति कोई भी तंत्र (महाविद्या) सिद्ध कर लेता है वह निर्लोभ होकर व्यथित को आंखोह से देखकर ,

हाथ से स्पर्श कर कर, फुक मारकर, पैर के अंगूठे से कुरेदकर या अभिमंत्रित जल देकर प्रत्येक शरणागत का कल्याण कर सकता है |

मैंने आप सब को कामाख्या के विषय में थोरा सा जानकारी जो मेरे पास था आप सब को बताना अपना दायित्व  समझा सोह यदि मुझसे कोई त्रुटी इसमें  होई हो तोह आप हमे क्षमा करना |


                                                        ॐ|| जय माता कामाक्षा ||ॐ 


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